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देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद भी जाति की राजनीति से अछूता नही रहा। पहली बार राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के नाम की घोषणा के दौरान उसकी जाति का प्रमुखता से उल्लेख किया गया। हालाकि किसी जाति विशेष का राष्ट्रपति होने से देश मे उस जाति का कोई भला नही होने वाला। इससे पहले के आर नारायणन भी दलित राष्ट्रपति रह चुके है। पर उनके कार्यकाल में दलित उत्पीड़न कम नहीं हुआ। बल्कि और बढ़ गया। मेरे ख्याल से राष्ट्रपति का पद जाति और संप्रदाय के दायरे में नही होंना चाहिये। इस सर्वोच्च संबैधानिक पद पर सबसे योग्य व्यक्ति को बैठना चाहिये। मैं श्री रामनाथ कोबिन्द की योग्यता पर भी सवाल नही उठा रहा ना ही मैं दलित विरोधी हूं। लेकिन जाति के भवर में फसी देश की राजनीति से व्यथित हू। रामनाथ के नाम के ऐलान के दौरान उनकी जाति पर जोर देकर भाजपा ने उनके कद को छोटा कर दिया। कम से कम सर्वोच्च संबैधानिक पद को राजनैतिक दल जातीय राजनीति की संक्रिनता से दूर रखें।
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